बाबा जी की प्यारी साध संगत जी अब जो हम आपको बहुत ही प्यारी बात बताने जा रहें हैं सुनकर आँसू रोक नहीं पाएँगे आप ऐसा एहसास होगा जैसे कोई फर्क नहीं पड़ता अगर आप पूरी दुनिया में बिलकुल अकेले खड़े हो पर मालिक का प्यार और विश्वास साथ है तो कोई दूसरी ताकत आपका मुकाबला कर ही नहीं पाएगी अगर मालिक साथ है तो चाहे दुनिया पर कहर ही क्यों ना बरस रहा हो वो कहर भी आपका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा वो कहते है ना पाया तेरे दर तो मैं रहमता हजारां शुक्रगुजार तेरा, शुक्रगुजार हाँ हे सतगुरु, मैंनू है आस तेरी, तू आसरा है मेरा, तेरी याद विच बीतें, हर शाम ते सवेरा । यह सच्ची घटना सुनकर आप खुद को बहुत सिक्योर्ड बहुत सुरक्षित महसूस करेंगे, कि बाबा जी अपने बच्चों के कितने अंग संग हैं, जो बात हम आपको बताने जा रहे हैं, ये संत कबीर जी की है, एक बार संत कबीर जी कंधे पर कपड़े का थान लादे बाज़ार जाने की तैयारी कर रहे थे तो माता लोई जी ने कहा भगत जी आज घर में खाने को कुछ भी नहीं है आटा, नमक, दाल, चावल, गुड़ और शक्कर सब खत्म हो गए हैं शाम को बाजार से आते हुए घर के लिए राशन का सामान जरूर लेते आना तो कबीर जी ने उत्तर दिया देखता हूँ अगर कोई अच्छा मूल्य मिला तो निश्चय ही घर में आज धन धान्य आ जाएगा तो माता लोई जी ने कहा साईं जी अगर अच्छी कीमत ना भी मिले तब भी इस बुने हुए थान को बेचकर कुछ राशन तो ले ही आना घर के बड़े बूढ़े तो भूख बर्दाश्त कर लेंगे पर कमाल और कमाली अभी छोटे हैं उनके लिए तो कुछ ले ही आना तो कबीर जी ने कहा जैसी मेरे राम की इच्छा ऐसे कह कर कबीर जी बाजार को चले गए बाजार में जाते हुए उन्हें किसी ने पुकारा वहाँ साईं कपड़ा तो बड़ा अच्छा बुना है और ठोक भी अच्छी लगाई है तेरा परिवार बसता रहे ये फकीर ठंड में काँप काँप कर मर जाएगा कुछ दया कर और रब के नाम पर दो चादरों का कपड़ा इस फकीर की झोली में डाल दे कबीर जी ने फिर पूछा कि दो चादरों में कितना कपड़ा लगेगा तो उस फकीर ने उतना कपड़ा बताया इत्तेफाक से कबीर जी के थान में कुल उतना ही कपड़ा था और फिर कबीर जी ने पूरा थान उस फकीर को दान कर दिया दान करने के बाद जब कबीर जी घर लौटने लगे तो उनके सामने अपनी माँ, पिता, छोटे बच्चे कमाल और कमाली के भूखे चेहरे नजर आने लगे और फिर लोही जी की कही बात कि घर में खाने को कुछ भी नहीं है, दाम कम भी मिले तो भी ले आना ये सब नजारा सामने आ गया अब दाम तो क्या थान भी दान में जा चुका था और कबीर जी गंगा तट पर चले गए वहां जाकर बैठ गए और मन ही मन कहने लगे जैसे मेरे रब की इच्छा जब सारी सृष्टि का ख्याल भी खुद रखता है तो अब मेरे परिवार ख्याल भी वो खुद ही करेगा और फिर कबीर जी परमात्मा की बंदगी में खो गए अब भगवान कहाँ रुकने वाले थे कबीर जी ने सारे परिवार की जिम्मेदारी अब उनके सपूत जो कर दी थी और अब भगवान ने कबीर जी की झोपड़ी का दरवाजा खटखटाया माता लोई जी ने पूछा कौन है? तो भगवान ने पूछा कबीर का घर यही है ना? फिर माता लोई जी ने कहा लेकिन आप कौन? तो भगवान ने कहा सेवक की क्या पहचान होती है भक्तानी। जैसे कबीर, राम का सेवक वैसे ही मैं कबीर का सेवक, ये राशन का सामान रखवा लो। फिर माता लोई जी ने दरवाजा पूरा खोल दिया, फिर इतना राशन घर में उतरना शुरू हुआ कि घर में रहने की जगह ही कम पड़ गई। फिर माता लोई जी ने कहा, इतना सामान कबीर जी ने भेजा है, मुझे नहीं लगता। फिर भगवान ने कहा, हाँ भक्तानी, आज कबीर का थान सच्ची सरकार ने खरीदा है, जो कबीर का सामर्थ्य था उसने भुगता दिया और अब जो मेरी सरकार का सामर्थ्य है वो चुकता कर रही है जगह और बनाओ सब कुछ आने वाला है भगत जी के घर में अब शाम ढलने लगी थी और रात का अँधेरा बढ़ता जा रहा था सामान रखवाते रखवाते लोई जी थक चुकी थी घर के सब लोग अमीरी आते देख खुश थे कमाल और कमाली कभी बोरे से शक्कर निकालकर खाते तो कभी गुड़ कभी मेवे देखकर मन ललचाते और झोली भर भर कर मेवे लेकर बैठ जाते कबीर जी अभी तक घर नहीं आए थे पर सामान आना लगातार जारी था आखिर लोई जी ने हाथ जोड़कर कहा सेवक जी अब बाकी का सामान कबीर जी के आने के बाद ही ले आना हमें उन्हें ढूंढने जाना है क्योंकि वो अभी तक घर नहीं आए हैं भगवान जी बोले वो तो गंगा किनारे भजन सिमरन कर रहे हैं फिर नीरू और नीमा लोई जी कमाल और कमाली को लेकर गंगा किनारे आ गए उन्होंने कबीर जी को समाधि से उठाया सब परिवार वालों को सामने देखकर कबीर जी सोचने लगे जरूर ये भूख से बेहाल होकर मुझे ढूंढ रहे हैं। इससे पहले कि कबीर जी कुछ बोलते तो उनकी माँ नीमा जी बोल पड़ी। कुछ पैसे बचा लेने थे? अगर थान अच्छे भाव बिक गया था, तो सारा सामान तूने आज ही खरीद कर भेजना था क्या? अब कबीर जी कुछ पल के लिए हैरान हुए। फिर माता-पिता लोई जी और बच्चों के खिलते चेहरे देखकर उन्हें एहसास हो गया कि जरूर मेरे राम ने कोई खेल कर दिया है, लोई जी ने शिकायत की अच्छी सरकार को आपने थान बेचा और वो तो सामान घर में भरे ही जा रहा है रुकता ही नहीं है पता नहीं कितने वर्षों तक का राशन दे गया उससे मिन्नतें करके रुकवाया कि बस कर बाकी कबीर जी के आने के बाद उनसे पूछ कर ही कही रखवाएँगे अब कबीर जी हँसने लगे और बोले लोई जी वो सरकार है ही ऐसी जब देना शुरू करती है तो सब लेने वाले थक जाते हैं उसकी बख्शीश कभी भी खत्म नहीं होती उसकी बख्शीश भी सच्ची सरकार की तरह सदा कायम रहती है और कबीर जी की ये बात सुनकर मेरे आँसू रुक ही नहीं पाए तो अब आप खुद ही देखिए कमी तो सिर्फ और सिर्फ हमारे अंदर ही है हमें अपने सतगुरु पर पूरा विश्वास होना चाहिए यदि हम अपने सतगुरु पर पूरा विश्वास रखेंगे तो फिर हमें कभी भी किसी भी तरह की कोई कमी नहीं रहेगी हम बहुत खुशनसीब है कि मालिक हमारे बहुत अनसंग है। तो हमें इसकी कदर करनी चाहिए कि मालिक ने हमें क्या-क्या दिया हुआ है। इतनी नियामतें बख्शी हुई है। तो हमेशा उस मालिक का शुक्रगुजार रहना चाहिए। हमेशा शुक्र करना चाहिए।
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