बाबा जी की प्यारी साध संगत जी वो कहते हैं ना इक ऐब मेरा बाबूल वेखे ते लाख-लख झिड़कां मारे, लख ऐब मेरा सतगुरु वेखे ते फेर वी गल नाल लावे । साध संगत आज जो हम आपको बातें बताने जा रहें हैं वो सुनकर आपकी रूह कांप जाएगी कि हमें एक-एक करनी का हिसाब ऐसे देना पड़ता है, ये जरा सी बीमारी भी क्यों आई? इतनी गरीबी और परेशानी क्यों आई? ऐसे-ऐसे सवालों के जवाब आज आप सबको मिलेंगे तो ये वीडियो पूरा जरूर सुनना क्योंकि बाबा जी ने जो दो बातों से चेताया है, वो नहीं सुनेंगे तो बहुत ज्यादा पछताना पड़ेगा. पहले घटना सुनते है फिर वो दो बाबा जी की चेतावनी बताई जाएगी साथ संगत जी ये जो घटना आपको बता रही हूँ इसमें बहुत सारी सीख देने वाली बातें है एक बार एक साहूकार था उसने एक नौकर रखा हुआ था अब वो नौकर बहुत नेक नियत था बहुत विश्वास पात्र था इतना ईमानदार कि बिना किसी फायदे के दिल और आत्मा से अपने मालिक का ख्याल रखता जैसे हमारे प्यारे बाबा जी के प्यारे सेवादार सच्चे मन से सेवा में दिन रात लगे रहते है बिलकुल वैसे ही वो नौकर अपने मालिक की दिल से सेवा में लगा रहता अब उस साहूकार ने सोचा कि ये मेरा जो नौकर जब से आया है ये सब पर ध्यान रखता है मेरी दुकान भी संभालता है और घर के भी सारे काम संभाल लेता है इसके आने से मेरे दुकान का काम भी अच्छा हो गया है क्यों ना इसकी तनख्वाह बढ़ा देता हूँ अब धीरे धीरे उसकी तनख्वाह बढ़ाता जाता है फिर उस साहूकार के मन में ये आया कि क्यों ना इसको अपने बिज़नेस का पार्टनर बना लिया जाए इतना ईमानदार इंसान कहाँ मिलेगा? वैसे भी सारा काम यही संभालता है और काम इतना बढ़ गया है इसलिए इसको ही पार्टनर बनाऊँगा तो और मन लगा के काम करेगा। अब इस साहूकार ने उस नौकर को पार्टनर बना लिया कागजात बनवा के साइन करवा लिए और वो नौकर अब पार्टनर बन गया पर ना तो उस नौकर ने कभी अपनी तनख्वाह माँगी ना पार्टनरशिप का हिस्सा बस नौकर यही सोचता था जब मुझे पैसे चाहिए होंगे तो ले लूँगा या सेठ खुद दे देगा तो ले लूँगा अब कुछ साल बीत गए ये साहूकार सोचता है कि ज़रा हिसाब तो लगाऊँ कितने पैसे हो गए है इसके अब तक जब साहूकार सालों का हिसाब लगाने बैठा तो हैरान हो गया कि इतना सारा पैसा मुझे देना पड़ेगा जबकि इसकी तनख्वाह भी थोड़ी थी और पार्टनरशिप के हिस्से की परसेंटेज भी थोड़ी थी पर तब भी इतना ज़्यादा उसके पैसे बैठ गए कि साहूकार हैरान होता जा रहा था अब साहूकार सोचता है कि इतने सालों तक इस नौकर ने पैसा लिया ही नहीं और अब हिसाब लगाया कि इतना देना पड़ेगा अब ये साहूकार घबरा गया अब इसको लालच आ गया परेशान भी है कि इतना पैसा कैसे दे दूँ इसका तो कुछ करना ही पड़ेगा थोड़े थोड़े में तो पता नहीं चलता पर इतना बड़ा हैरान कर देने वाला बकाया कैसे दे दूँ सोचो मैं पड़ा हुआ है कि अचानक नौकर की एक दिन तबियत खराब हो गयी अब जिस डॉक्टर को बुलवाया तो उस डॉक्टर को पाँच सौ रुपए रिश्वत दे दी साध संगत जी उस वक्त पाँच सौ रुपए की भी बहुत ज़्यादा वैल्यू होती थी और यह घटना एक कड़ी को दूसरी कड़ी से जोड़ती जा रही है एक एक पात्र क्या शिक्षा देके जाएगा सुनकर आप हैरान रह जाओगे साध संगत जी अब इस साहूकार ने उस डॉक्टर को पाँच सौ रुपए रिश्वत देकर कहा कि मेरे इस नौकर को ज़हर का इंजेक्शन देकर मार दे जिससे नौकर को इतना पैसा ना देना पड़े ये नौकर मर जाएगा तो पैसा बच जाएगा अब क्या हुआ नौकर मर गया कुछ समय बाद इस साहूकार के यहाँ एक बच्चे ने जन्म लिया बेटा पैदा हुआ सोचता है कि सुना था बुरे कर्म करने वालों का तो बहुत बुरा होता है मैंने तो अपने नौकर को जान से मार दिया तब भी भगवान ने मुझे बेटा दे दिया जबकि कई सालों से उसके घर बच्चा पैदा ही नहीं हो रहा था अब ये आदमी बड़ा खुश साध संगत जी बड़े ध्यान से सुनना कि आगे क्या क्या होने वाला है अब इस साहूकार का बेटा तेईस चौबीस साल का हुआ तो बेटे की शादी करवाई पूरा परिवार बहुत खुश अब जैसे ही शादी करके बेटा बहू को घर लाया तो बेटे के पेट में बड़ी तेज दर्द हुआ कि बस वहीं लेट गया बहुत चिल्लाया वैद्य बुलाए गए बड़े बड़े डॉक्टर बुलाए गए कई घंटे हो गए पर दर्द ठीक होने का नाम ही नहीं ले रहा था दिन बीतते गए महीने बीतते गए बहुत महँगे से महँगा डॉक्टर बड़े से बड़े वैद्य बुलाए गए पर कुछ नहीं हुआ इतना इलाज चला कि उस साहूकार का सारा पैसा ही खत्म हो गया डॉक्टर ने जवाब दे दिया अब ये तेरा बेटा नहीं बचेगा रात हुई वो साहूकार अपने बेटे के पास उदास बैठा है कि अब ये नहीं बचेगा अचानक इस साहूकार के कानों में एक आवाज आयी मालिक पहचाना वो साहूकार हैरान कि ये तो उसके नौकर की आवाज़ है आवाज़ फिर आयी मालिक पहचाना और वो आवाज़ बेटे के अंदर से आ रही थी बेटा बोला मैं तुम्हारा बेटा नहीं मैं तो तुम्हारा नौकर हूँ अपना हिसाब पूरा करने आया था जितने पैसे मेरे तुम्हारे पास रखे थे वो सब खर्च करवा दिए अब मैं जा रहा हूँ और फिर वो नौकर एक एक बात खोल के बताता है साध संगत जी यहाँ साहूकार और डॉक्टर ने तो माने कर्म किए ही थे पर इस नौकर की भी बहुत बड़ी गलती थी सुनकर हैरान हो जाओगे घटना के अनुसार सबका चिट्ठा खुलना शुरू हुआ ऐसे नौकर बोला के मालिक तुमने डॉक्टर को पाँच सौ रुपए रिश्वत देके मुझे जहर का इंजेक्शन देके मरवा दिया मैं उसका हिसाब पूरा करने आया था अब वो साहूकार ज़ोर ज़ोर से रो पड़ा और उसको सोझी आ गयी मेरी करनी का हिसाब मैं अपनी ज़िंदगी के आखिरी पड़ाव में दे रहा हूँ फिर वो नौकर बोला ये तो कुछ भी नहीं ये तो मैंने अपना हिसाब पूरा किया है अभी तो आपको इसका ब्याज भी देना पड़ेगा वो कैसे वो ऐसे ये जो सारी जिंदगी तड़प तड़प के अपने बेटे की याद में गुजारोगे वो अलग और निर्धन भी हो चुके हो मोहताज रहोगे सारी उम्र भर दूसरे लोगों पर जिस धन के लिए मुझे मरवाया था ना वो धन रहा ना वो बेटा रहा अब वो साहूकार चुपचाप उस नौकर की बातें सुन रहा था अब वो साहूकार अपने नौकर से पूछता है कि मैंने तो तुझे मरवा के बुरा कर्म किया तो मैं तो भुगत ही रहा हूँ और सारा जीवन भुगतूँगा पर जो तेरी पत्नी है जिससे तूने शादी की उसने तो एक भी दिन सुख का नहीं देखा उसे विधवा करके जा रहा है उसने कौन सा पाप किया है उस बिचारी का क्या कसूर जो उसको ऐसे विधवा करके जा रहा है साध संगत जी बाबा जी समझाते है कि कोई भी कर्मों से नहीं छूट सकता हम जैसा कर्म करते है वैसा ही फल हमें भोगना पड़ता है इसीलिए कहते है कि कोई भी कर्म करते वक्त बहुत सोच विचार करना चाहिए अब घटना के अनुसार साहूकार ने पूछा कि इस बेचारी लड़की का क्या दोष जो तू उसे विधवा करके जा रहा है तो वो नौकर के रूप में बेटा मुस्कुराता है और कहता है वो डॉक्टर भूल गए जिसने पाँच सौ रूपए में मुझे ज़हर का इंजेक्शन लगाया था ये मेरी पत्नी वो डॉक्टर ही है ओह मेरे रब्बा अब ये पूरी घटना जब बाबा जी संगत को सुना रहे थे तो बाबा जी ने संगत से सवाल किया कि साहूकार को तो अपने कर्म की सजा मिली उस डॉक्टर को भी अपने पाप की सजा मिली और सब एक ही परिवार में सदस्य बनकर भोगने आ गए पर उस नौकर का क्या कसूर उस नौकर को सजा क्यों मिली साध संगत जी सोचो कितनी गहरी बात है बेचारा नौकर जो इतना ईमानदार कभी किसी का बुरा नहीं किया फिर भी उसके साथ बुरा हुआ क्यों हुआ साध संगत जी सोचने बैठोगे तो उम्र बीत जाएगी पर सोच ही नहीं पाओगे कि बाबा जी ने इसका क्या जवाब दिया ऐसे सवाल का जवाब सिर्फ परमात्मा के पास ही होता है और बाबा जी तो खुद रब है तो बाबा जी ने संगत से ये सवाल करने के बाद जो जवाब दिया सुनकर हैरान रह जाओगे ध्यान से सुनना बाबा जी ने क्या कहा बाबा जी ने कहा ना साहूकार की ना डॉक्टर की इतनी बड़ी गलती थी जितनी बड़ी गलती उस नौकर की थी और वो गलती थी कि उसने बड़े मन से सेवा की वो भी एक इंसान की जबकि सच्चे दिल से सेवा किनकी की जाती है प्यारे सतगुरु की। सतगुरु को छोड़ के किसी की भी दिल से सेवा करके देख लो आखिर में दर्द ना मिले तो कहना और ऐसा दर्द मिलेगा कि झेल ही नहीं पाओगे किसी इंसान की वडियाई भी कर दी अगर तो कुछ समय बाद उसी इंसान की निंदा नहीं की तो कहना निंदा करने पर मजबूर हो जाओगे हालांकि निंदा की वाणी में सख्त मनाई है पर अंदर ही अंदर पछताओगे कि हाय रब्बा तवाडे तो दूर हो के की खटिया ये सब मझधार में छोड़ के जाएँगे फिर रोते हुए एक आवाज अपने सतगुरु को देना एक सेकंड में ना आए तवाडा सोहना सतगुरु तो कहना हमारे माँ-बाप सब बाबा जी ही तो हैं जैसे माँ-बाप अपने भटके हुए बच्चों के इंतजार में रात-रात तक सोते नहीं है ना इसी तरह अपने प्यारे मुर्शिद को मुसीबत में ही सही याद करके तो देखो साध संगत जी सबको आजमाकर देख लो कितने ही रिश्तेदार हो बड़े ओहदे वाले मित्र हो मुसीबत की घड़ी में ये सब लोग एक बार अहसास जरूर करवाते है कि बुरे वक्त में हमें आजमा लो कभी काम नहीं आएँगे अब यहाँ नौकर ने उस साहूकार की सेवा ऐसे की मानो भगवान हो। वाणी कहती है खसम छोड़ दूजे लगे डूबे से वणजारेया जिसने भी अपने खसम को छोड़कर दूसरे को ह्रदय में बसाया उसे पछताना ही पड़ेगा ईमानदारी से काम करना अलग बात है पर मन अपने सद्गुरु को छोड़कर किसी और से लगाया तो पछताना ही पड़ेगा वाणी कहती है निध निधान नानक हर सेवा अवर स्यानफ़ सगल अकाथ, सतगुरु की सेवा तो नित निधान है पर अगर किसी और की सेवा करेगा सब व्यर्थ चला जाएगा सबसे पहले माता पिता की सेवा है फिर दूसरी सतगुरु की सेवा है संगत की सेवा है संगत खुश होगी तो सद्गुरु खुश होंगे ये सेवाएँ मन लगाकर करने वाली सेवाएँ हैं इन सेवाओं को छोड़कर किसी और के पीछे भागोगे तो पछताना ही पड़ेगा अपना मन सिर्फ सतगुर को दे दो। वो कैसे? समर्पण कर दो अपने आप को। किसी से कभी कोई उम्मीद मत करना। बाबा जी साथ हैं तो दुनिया अपने आप तुम्हारे साथ आएगी। अब इन घटनाओं से जो दो शिक्षा मिली है और यही बाबा जी ने चेताया भी है। पहली शिक्षा किसी का हक मारोगे तो ब्याज समेत लौटाना ही पड़ेगा और उसके लिए पता नहीं इस छोटी सी जिंदगी में क्या-क्या खोना पड़ेगा। क्या-क्या दुख सहने पड़ेंगे। और दूसरी शिक्षा गुरु को छोड़कर किसी दूसरे को अपने ह्रदय में मत बिठाना कभी बहुत ज्यादा पछताओगे। सारी संगत यह सुनते हुए एनालाइज ज़रूर करना कि जिसने भी सतगुरु से ऊपर किसी दूसरे पर आँख बंद करके भरोसा किया उसका भरोसा टूटा ही होगा, है ना? फिर आखिर में बाबा जी ही तो आते हैं, जब सब साथ छोड़ देते हैं। जैसे माता-पिता होते हैं, बाबा जी हमारे माता-पिता ही तो हैं ना, बच्चा बेझिझक अपने माँ-बाप से ही तो हक़ जताता है ना? तो हम क्यों गैरों के भागते हैं। हमारे प्यारे बाबाजी हमारे माँ-बाप हैं। पूरे हक से बात किया करो अपने प्यारे बाबा जी से। वो कहते हैं ना जिसदा साहिब डाडा होये ओसनु मार ना सके कोई। बाबा जी को सच्चे दिल से अपना मानकर तो देखो वारे न्यारे ना हो गए तो कहना
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