बाबा जी की प्यारी साध संगत जी वो कहते हैं ना यकीन तो कर ऐ बंदे जब तेरा प्यारा सतगुरु तुझे देगा तो वो बेहतर नहीं बेहतरीन होगा साध संगत जी एक बार रात का समय था और गुरु नानक देव जी भाई लहणा जी से कहते है के लहणा ये कपड़े बाहर धुप में सूखा के ले आ रात का अँधेरा था पर बाबा जी भाई लहणा को कपड़े धुप में सुखा कर लाने को कहते है यहाँ भाई लहणा बिलकुल कोई भी सवाल नहीं करते अगर हम जैसे होते तो बाबा जी को एकदम कहते बाबा जी बाहर तो अँधेरा है धूप कहाँ है हम दुनिया वालों के साथ रहकर कितना लॉजिकल हो गए है हम है ना जबकि हमारे पास तो वो चाबी है बाबा जी ने हमें दी हुई है सब कुछ वो नाम की ताकत ही तो है फिर भी हम इस दुनिया के आडंबरों में फंसे रहते हैं नाम दान मिलने के बाद तो कोई सवाल होना ही नहीं चाहिए जैसे मेरे पास एक बाबा जी की प्यारी संगत का सवाल आया कि भजन सिमरन रोज करने के बाद भी परेशानियाँ आ रही है क्या सूली का शूल बन जाएगा या कर्म भुगतने पड़ेंगे तो इस बात का जवाब यही है कि नाम जपने से इतनी सकारात्मकता या इतनी पाजिटिविटी आ जाएगी कि हर परेशानी छोटी लगने लगेगी हमारे माने कर्म छोटी-छोटी परेशानियों के रूप में ही खत्म जाएँगे और आने वाला टाइम पहले से बहुत बेहतर होता जाएगा अपने सतगुरु पर पूरा विश्वास करके तो देखो और ये विश्वास भी भजन सिमरन पर बैठने से बढ़ता जाएगा और आपकी चिंता आपके चिंतन में बदल जाएगी साध संगत जी हमारा चिंतन क्या है हमारा चिंतन है भजन सिमरन जब सिमरन हर वक्त याद रहेगा तो हमें हर वक्त एक पाजिटिविटी सकारात्मकता का एहसास रहेगा और जहाँ सकारात्मकता होती है तो काम अपने आप अच्छे होते चले जाएंगे। अब घटना के अनुसार भाई लैणा जी ने ये नहीं कहा कि बाबा जी बाहर तो धूप नहीं रात है बस कपड़े लेकर चले गए बाहर सुखाने अपनी मत का कोई इस्तेमाल नहीं किया। और सतगुरु के आगे अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करके करेंगे भी क्या? अब बाबा जी के दो प्यारे सेवादार एक बाबा बूढ़ा जी और एक भाई लैणा जी थे। और भी सेवादार थे तो बाबा जी ने सबकी अंतिम परीक्षा लेनी चाही के इन सब में से ये गद्दी किसको सौंपी जाए अब बाबा जी ने अपना वो रूप बनाया जिससे उन्होंने एक डंडा उठाया और उस वक्त बाबा जी के पास जितने भी सेवादार थे उनको एक एक करके डंडे से पीटने लगे बाबा जी के तो खेल ही निराले है अब बाबा जी डंडे से सबको जोर जोर से पीटने लगे कुछ सेवादार तो उसी वक्त डर के भाग गए कि पता नहीं बाबा जी को क्या हो गया है और अब कुछ सेवादार रह गए तो बाबा जी उन्हें भी पीटते जा रहे थे और कहते रहे थे चलो जाओ यहाँ से सब चले जाओ पर कुछ बचे हुए सेवादार जाने का नाम ही नहीं ले रहे थे अब बाबा जी ने एक और खेल रचाया वो ये कि बाबा जी ने रास्ते में चांदी के सिक्कों के ढेर लगा दिए तो कुछ सेवादार उस चांदी के ढेर पर ही रुक गए और बाबा जी को वहीं छोड़ दिया अब बाबा जी ने आगे चलकर सोने और हीरे जवाहरात के ढेर लगा दिए तो कुछ सेवादार उन्हीं सोने जवाहरात के ढेर पर अटक गए अब बचे बाबा बुड्ढा जी और भाई लहणा जी। वो बाबा जी के साथ चलते ही जा रहे थे। तो बाबा जी उनसे बोले, तुम दोनों क्यों रह गए? तुम भी उन लोगों के साथ रह जाते, तो उन दोनों ने एक ही बात बोली, बाबा जी, जो पीछे रुक गए हैं, उनका इस दुनिया में कोई अपना होगा, पर हमारे तो आपके अलावा कोई नहीं है, सच्चे पातशाह। अब बाबा जी ने इन दोनों में से एक को गद्दी के लिए चुनना था, तो बाबा जी ने एक परीक्षा और ली। अब बाबा जी ने एक मुर्दा प्रकट कर दिया और उन दोनों से एक बार बोले कि जाओ अगर हमारा हुक्म मानते हो तो उस मुर्दे को खाओ। साध संगत जी इतनी कड़ी परीक्षा तो हम दे ही नहीं सकते। यहाँ पर बाबा बुड्ढा जी सोचने लगे कि मुर्दा कैसे खाएं? और सोच में पड़े हुए हैं पर भाई लैणा जी पहुँच गए मुर्दे के पास और बाबा जी से पूछने लगे बताओ बाबा जी मुर्दा कहाँ से खाना शुरू करूँ? सिर की तरफ से या पैर की तरफ से? तो बाबा जी ने कहा कहीं से भी शुरू कर साध संगत जी बड़े ही ध्यान से सुनना अब जब भाई लहणा जी ने जैसे ही मुर्दे की सफेद चादर हटाई तो वहाँ तो कड़ा प्रसाद निकला वहाँ मेरे सतगुरु तभी गुरु नानक पातशाह बोले भाई लहणा तू तो लै लित्ता तुझे जो लहणा सी तू ले गया तुझे हमसे लेना था और हमें तुझे देना था साध संगत जी भाई लैणा जी आगे चलकर गुरु अंगद देव जी बने वो भी हुकुम मानकर बाबा जी का अपनी बुद्धि नहीं चलाई इतने मुश्किल बड़ी आसानी से मान जाते थे तभी तो गुरु नानक बाबा जी के रूप हो गए साध संगत जी हम लोगों के लिए हुक्म क्या है वो ये है कि बस सुबह उठकर हमें बैठना है और भजन सिमरन नितनेम करना है जब बाबा जी ने हमें नाम की बख्शीश की हुई है तो हमारे अंदर ये सवाल आना ही नहीं चाहिए कि हमारे साथ ये क्यों हो रहा है और हमारे साथ ही ऐसा क्यों हुआ उसकी रजा के बिना तो एक पत्ता भी नहीं हिलता तो इस चीज को मान लो अगर कोई दुःख आ रहा है तो वो हमें मजबूत बनाने के लिए आता है जिससे आगे चलकर हमें खुशियाँ ही खुशियाँ मिलती चली जाती है बस हमें अपने सद्गुरु के भाने में रहना है उसके भाने में रहकर तो देखो शुक्राना करके तो देखो वारे न्यारे होते चले जाएँगे हमें वो मिल जाएगा जो हमने कभी सोचा भी नहीं होगा
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